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32 साल बाद न्याय! तरनतारन में एक और पुलिस मुठभेड़ निकली फर्जी, दो पूर्व पुलिस अधिकारी दोषी करार


सीबीआई मोहाली कोर्ट ने 1993 में पंजाब पुलिस के एक और मुठभेड़ को फर्जी घोषित किया है। अदालत का यह फैसला 32 साल बाद आया है। फैसले में तरनतारन पुलिस के दो पूर्व पुलिस अधिकारियों, सीता राम, जो उस समय एसएचओ पट्टी थे और राजपाल, जो उस समय पुलिस स्टेशन पट्टी में तैनात थे, को दोषी ठहराया गया है। आपको बता दें कि तरनतारन पुलिस ने 1993 में दो युवकों को मृत दिखाया था, जिसमें मामले की पैरवी के दौरान 11 पुलिस अधिकारियों पर अपहरण, अवैध हिरासत और हत्या का आरोप लगाया गया था, लेकिन ट्रायल के दौरान 4 की मौत हो गई थी।

सीबीआई ने 1995 में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आधार पर मामले की जांच की। आरम्भ में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की और 27.11.1996 को ज्ञान सिंह नामक व्यक्ति का बयान दर्ज किया गया और बाद में फरवरी 1997 में सीबीआई द्वारा पुलिस अधीक्षक कैरों और पट्टी पुलिस थाने के एएसआई नोरंग सिंह तथा अन्य के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 364/34 के अन्तर्गत जम्मू में एक नियमित मामला आर/सी: 11(एस)97/एसआईयू-XVI/जेएमयू दर्ज किया गया। सीबीआई के लोक अभियोजक अनमोल नारंग ने बताया कि आरोपी सीता राम की आयु 80 वर्ष है, जिसे आईपीसी की धारा 302, 201 और 218 के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया है तथा राजपाल की आयु लगभग 57 वर्ष है, जिसे धारा 201 और 120-बी के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया है।

सीबीआई के वकील ने आगे कहा कि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आधार पर जांच की, जो साबित करता है कि 30.1.1993 को गुरदेव सिंह उर्फ ​​देबा पुत्र ज्ञान सिंह निवासी गलीलीपुर, तरनतारन को एएसआई नोरंग सिंह, पुलिस पोस्ट करन, तरनतारन के प्रभारी के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी द्वारा उसके निवास से उठाया गया था और इसके बाद 05.02.1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह, पीएस पट्टी, तरनतारन के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी द्वारा गांव बहमनीवाला, तरनतारन में उसके निवास से उठाया गया था। बाद में दोनों को दिनांक 6.2.1993 को थाना पट्टी के भागुपुर क्षेत्र में मुठभेड़ में मारा गया दिखाया गया तथा मुठभेड़ की झूठी कहानी बनाकर थाना पट्टी, तरनतारन में मुकदमा/एफआईआर नं. 9/1993 दर्ज किया गया। दोनों मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार लावारिस अवस्था में कर दिया गया तथा उन्हें उनके परिवारों को नहीं सौंपा गया। उस समय पुलिस ने दावा किया था कि दोनों हत्या, जबरन वसूली आदि के 300 मामलों में शामिल हैं, लेकिन सीबीआई जांच में यह तथ्य झूठा पाया गया।

वर्ष 2000 में जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने तरनतारन के 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था, जिनमें तत्कालीन प्रभारी पीपी कैरों नोरंग सिंह, एएसआई दीदार सिंह, कश्मीर सिंह तत्कालीन डीएसपी, पट्टी, सीता राम तत्कालीन एसएचओ पट्टी, दर्शन सिंह, गोबिंदर सिंह तत्कालीन एसएचओ वल्टोहा, एएसआई शमीर सिंह, एएसआई फकीर सिंह, सी सरदूल सिंह, सी राजपाल और सी अमरजीत सिंह शामिल थे और वर्ष 2001 में उनके खिलाफ आरोप तय किए गए थे, लेकिन उसके बाद पंजाब अशांत क्षेत्र अधिनियम, 1983 के तहत आवश्यक मंजूरी के लिए अपील के आधार पर उच्च न्यायालयों द्वारा मामले को 2021 तक रोक दिया गया था, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया था।

हैरानी की बात यह है कि सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सभी साक्ष्य इस मामले की न्यायिक फाइल से गायब हो गए और उच्च न्यायालय द्वारा सूचित किए जाने के बाद, उच्च न्यायालय के आदेश पर रिकॉर्ड को फिर से तैयार किया गया और अंत में पहले सरकारी गवाह का बयान घटना के 30 साल बाद वर्ष 2023 में दर्ज किया गया।


पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका का कहना है कि सीबीआई ने इस मामले में 48 गवाहों के नाम बताए थे, लेकिन ट्रायल के दौरान केवल 22 गवाहों को ही पेश किया गया, क्योंकि देरी के कारण ट्रायल के दौरान 23 गवाहों की मौत हो गई और इस तथ्य के कारण कुछ आरोपियों को बरी कर दिया गया। इसी प्रकार, चार आरोपियों सरदूल सिंह, अमरजीत सिंह, दीदार सिंह और समीर सिंह की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।

अंततः, मुकदमा शुरू होने के 2 साल के भीतर, राकेश कुमार गुप्ता की सीबीआई विशेष अदालत ने फैसला सुनाया और 2 आरोपियों को दोषी ठहराया तथा 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अब मामले की सुनवाई सजा सुनाने के लिए 6 मार्च तक स्थगित कर दी गई है।


 

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